Shakeela bano bhopali biography of christopher

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शकीला बानो

प्रसिद्ध नामशकीला बानो भोपाली
जन्म1942
मृत्यु16 दिसम्बर, 2002
कर्म भूमिभारत
कर्म-क्षेत्रक़व्वाली गायन
मुख्य फ़िल्मेंशकीला जी ने 'सांझ की बेला', 'आलमआरा', 'टैक्सी ड्राइवर', 'परियों की शहजादी', 'सरहदी लुटेरा', 'डाकू मानसिंह', 'दस्तक', 'मुंबई का बाबू', 'जीनत' और 'सीआईडी' जैसी फ़िल्मों के लिए अपनी आवाज़ दी।
प्रसिद्धिप्रथम महिला क़व्वाल
नागरिकताभारतीय
अन्य जानकारीपचास के दशक में शकीला बानो प्रसिद्ध अभिनेता दिलीप कुमार के आमंत्रण पर मुंबई आईं। क़व्वाली के शौक़ीनों ने उन्हें हाथों-हाथ लिया। सन 1957 में निर्माता सर जगमोहन मट्टू ने उन्हें विशेष रूप से अपनी फ़िल्म 'जागीर' में अभिनय करने का अवसर दिया।
अद्यतन‎

14:10, 28 जून 2017 (IST)

शकीला बानो (अंग्रेज़ी: Shakeela Bano, जन्म- 1942; मृत्यु- 16 दिसम्बर, 2002) प्रसिद्ध भारतीय क़व्वाल हैं। भोपाल की पहचान शकीला बानो को पहली महिला क़व्वाल होने का दर्ज़ा प्राप्त है। काफ़ी लम्बे संघर्ष के बाद उन्हें फ़िल्में और स्टेज पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने का अवसर मिला था। शकीला बानो की प्रसिद्धि भारत के बाहर के देशों में भी है। उन्होंने पूर्वी अफ़्रीका, इंग्लैण्ड और कुवैत आदि देशों में अपने कार्यक्रम पेश किये हैं।

परिचय

देश की प्रथम महिला क़व्वाल शकीला बानो का जन्म सन 1942 में हुआ था। कई दिनों के लम्बे संघर्ष के बाद उन्हें फ़िल्मों में कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ था। धीरे-धीरे वे भारत के अन्य शहरोें में भी कार्यक्रम प्रस्तुत करने जाने लगीं। शकीला बानो ने कभी विवाह नहीं किया। उनके परिवार में उनकी बहिन और एक भाई हैं।

एक ज़माना था, जब किसी महिला क़व्वाल की कल्पना ही दूर की बात थी। उस ज़माने में किसी महिला क़व्वाल का मंच पर आना पहले तो लोगों को हैरानी की बात लगी, लेकिन शकीला बानो ने अपने बेबाक अंदाज़ और दबंग व्यक्तित्व के ज़रिए अपनी एक अलग ही धाक जमा ली। अपने शुरुआती दौर में उन्होंने जानी बाबू क़व्वाल के साथ जोड़ी बनाई और मंच पर दोनों के बीच मुक़ाबला दर्शकों को बाँधे रखता था।[1]

कॅरियर

मुख्य लेख : शकीला बानो का कॅरियर

पचास के दशक में शकीला बानो प्रसिद्ध अभिनेता दिलीप कुमार के आमंत्रण पर मुंबई आईं। क़व्वाली के शौक़ीनों ने उन्हें हाथों-हाथ लिया। उन्होंने फ़िल्मों में भी अपनी आवाज़ का जादू दिया। सन 1957 में निर्माता सर जगमोहन मट्टू ने उन्हें विशेष रूप से अपनी फ़िल्म 'जागीर' में अभिनय करने का अवसर दिया। इसके बाद उन्हें सह-अभिनेत्री, चरित्र अभिनेत्री की भूमिका निभाने के अनेक अवसर मिले। एचएमवी कंपनी ने 1971 में उनका पहला रिकॉर्ड बनाया और पूरे भारत में शकीला बानो अपने हुस्न और हुनर की बदौलत पहचानी जाने लगीं।

मृत्यु

शकीला बानो की मृत्यु 16 दिसम्बर, 2002[2] में हुई। वर्ष 1984 में भोपाल में गैस के रिसाव ने शकीला बानो से उनकी आवाज़ छीन ली थी। अपने अंतिम दिनों में वह दमे, मधुमेह और उच्च रक्तचाप से पीड़ित रहने लगी थीं। अंतिम दिनों में उन्होंने काफ़ी अभाव का जीवन देखा। जैकी श्रॉफ़ जैसे कुछ फ़िल्मकारों ने उनकी मदद भी की, लेकिन वह काफ़ी नहीं थी। शकीला बानो भोपाली ने तो सब कुछ भाग्य पर छोड़ ही दिया था, जैसे- उनकी एक मशहूर क़व्वाली की पंक्तियाँ हैं- "अब यह छोड़ दिया है तुझ पर चाहे ज़हर दे या जाम दे..."

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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